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मंगल को पृथ्वी बनते देर नहीं लगेगी, भौतिकवादी तौर-तरीकों से उठीं कुछ आशंकाएं

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इन मिशनों में लाल ग्रह पर विभिन्न पेलोड ले जाने से लेकर संचार सेवाएं प्रदान करने की बात हुई है, पर अंतरिक्ष यात्रियों को वहां भेजने पर अब तक कोई बात नहीं हुई है। मगर क्या लोग वाकई मंगल ग्रह पर जाना चाहते हैं? सवाल यह भी है कि लोगों को मंगल की धरती पर उतारने का सबसे अच्छा तरीका कौन-सा है? तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह भी है कि क्या हमें ऐसा करना चाहिए?1960 के बाद से मंगल ग्रह पर अब तक करीब 50 मिशन भेजे जा चुके हैं, जिनमें से 31 कामयाब रहे हैं, जो बुरा औसत नहीं है। 2016 में शिआपरेल्ली लैंडर की दुर्घटना जैसी विफलताएं भी मिली हैं। इसमें संदेह नहीं कि इन मिशनों से मंगल ग्रह के बारे में प्रचुर जानकारियां प्राप्त हुई हैं। इसके वायुमंडल, कक्षा और भूविज्ञान के अलावा यहां की सतह से दरवाजों और चेहरे जैसी अद्भुत छवियां भी दिखी हैं। हालांकि वैज्ञानिक इन सभी छवियों को चट्टानें ही बता रहे हैं, लेकिन इस ग्रह को लेकर आम लोगों की बढ़ती रुचि से पता चलता है कि यह हमारी कल्पनाओं में किस कदर व्याप्त है। एक सामान्य अंतरग्रहीय अंतरिक्ष मिशन की लागत करीब एक अरब अमेरिकी डॉलर होती है। यानी पिछले कुछ वर्षों में दुनिया की तमाम अंतरिक्ष एजेंसियों ने मंगल ग्रह पर करीब 50 अरब अमेरिकी डॉलर खर्च किए हैं और ये सिर्फ कैमरे, रोवर्स और लैंडर्स भेजने के लिए हैं, लोगों को वहां भेजना तो अगले स्तर की बात होगी। दशकों से नासा और दूसरी अंतरिक्ष एजेंसियों ने अंतरिक्ष मिशनों पर भारी रकम खर्च की है।लेकिन 2020 के दशक में अंतरिक्ष क्षेत्र में अन्वेषण को समृद्ध बनाने वाली तकनीकें वाणिज्यिक दुनिया में तेजी से विकसित हो रही हैं। इनमें से एक उदाहरण है एलन मस्क का स्पेस एक्स, जिसके कई उद्देश्यों में से एक है मंगल मिशन और अंतिम लक्ष्य है मानवता को अंतरग्रही बनाना। जहां नासा का दृष्टिकोण इन अंतरिक्ष परियोजनाओं को लेकर रूढ़िवादी रहा है, वहीं स्पेस एक्स बहुत सारे बदलाव तेजी से करता है और अपनी विफलताओं से जल्दी सीखता भी है। स्पेस एक्स अकेला नहीं है। खासकर अमेरिका में अंतरिक्ष तक पहुंच देने वाले वाणिज्यिक प्रदाताओं का उद्योग काफी तेजी से फल-फूल रहा है। ऐसा नहीं है कि नासा अपनी परियोजनाओं को बंद कर रहा है। वह सिर्फ वाणिज्यिक प्रदाताओं को जोड़ने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। 20 साल पहले की तुलना में चीजें जिस तरह से बदली हैं, उसे देखते हुए यह कदम अपरिहार्य भी लग रहा था। महंगे अंतरिक्ष मिशनों को सस्ता और ज्यादा कुशल बनाने के लिए भी ऐसी पहलें जरूरी थीं। वाणिज्यिक क्षेत्र की कंपनियों को भी इससे प्रोत्साहन मिला है, जो अंतरिक्ष मिशनों को पूरा करने के लिए लगातार नव-प्रवर्तन कर रही हैं। हालांकि ये अभी बिल्कुल शुरुआती दिन हैं और व्यावसायिक दृष्टिकोण को खुद को साबित करना होगा।जैसा करीब सौ साल पहले एचजी वेल्स ने अपने उपन्यास द वार ऑफ वर्ल्ड्स में भी बताया था, मंगल ग्रह आधुनिक मानस में एक रहस्यपूर्ण और खतरे के स्थान के तौर पर देखा जाता है। इस पर कई फिल्में और टीवी शो भी बन चुके हैं। काफी कुछ लिखा भी जा चुका है। सवाल फिर भी वही है कि क्या मनुष्य को मंगल ग्रह की यात्रा करनी चाहिए? मस्क जरूर ऐसा करना चाहते हैं। 2010 के दशक में नीदरलैंड के एक स्टार्ट-अप मार्स-वन ने इस मामले में जरूर पहल की थी।इस स्टार्ट-अप ने मंगल ग्रह की यात्रा के इच्छुक 100 स्वयंसेवियों का चयन किया और 2019 में दिवालिया होने के पहले लाखों डॉलर कमा लिए। इससे पता चलता है कि समाज का एक ऐसा समृद्ध तबका है, जो मंगल ग्रह पर बसने की इच्छा भी रखता है। कुछ लोग तर्क दे सकते हैं कि दूसरे ग्रह को बिगाड़ने की जगह पहले अपने ग्रह को सुधारने की जरूरत है। वर्तमान सोच के साथ इंसान अगर मंगल पर बस भी जाता है, तो उसे भी वह पृथ्वी बनाते देर नहीं लगाएगा।

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