जिले के नगर पंचायत अड़भार में मां अष्टभुजी देवी की दक्षिण मुखी प्रतिमा विराजित हैं। इसे पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित किया गया है। यहां पांचवी छटवी शताब्दी के अवशेष मिलते हैं। इतिहास में अड़भार का उल्लेख अष्द्वार के रूप में मिलता है । पिछले कोरोना महामारी एवं लाकडाउन के चलते मंदिर में श्रद्घालुओं को दर्शन प्रशासन की गाइडलाइन के चलते नहीं हो पाया था । इस वर्ष चैत्र नवरात्र में श्रद्घालु बड़ी संख्या में पहुँचेंगे ऐसा समितियों और ग्रामीडो का मनना
हैं।
अड़भार की मां अष्टभुजी आठ भुजाओं वाली है, साथ ही प्रतिमा दक्षिणमुखी है। मंदिर में मां अष्टभुजी की ग्रेनाइट पत्थर की आदमकद मूर्ति है। अष्टभुजी का मंदिर दो विशाल इमली पेड़ के नीचे बना हुआ है। मूर्ति के ठीक दाहिनी ओर डेढ़ फीट की दूरी में शिव की प्रतिमा योग मुद्रा में है। मंदिर परिसर में पड़े बेतरतीब पत्थर की बारिक देखकर हर आदमी सोचने पर मजबूर हो जाता है। प्राचीन इतिहास में अडभार का उल्लेख अष्ट द्वार के नाम से मिलता है। अष्टभुजी माता का मंदिर और इस नगर के चारों ओर बने आठ विशाल दरवाजों का मेल है
धीरे धीरे अपभ्रंश होकर इसका नाम अडभार हो गया। लगभग 5 किमी. की परिधि में बसा यह नगर कुछ मायने में अपने आप में अजीब है। यहां हर 100 से 200 मीटर में किसी न किसी देवी देवता की मूर्तियां सही सलामत न सही लेकिन खंडित स्थिति में जरूर मिल जाएंगी। आज भी यहां के लोगों को घरो की नींव खोदते समय प्राचीन टूटी फूटी मूर्तिया या पुराने समय के सोने चांदी के सिक्के , प्राचीन धातु के कुछ न कुछ सामान अवश्य प्राप्त होते हैं। और अगर ना मिले इस इस्थिति मे लोगो की मानता है की वह बनाया मकान आगे नही टिकता
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